डेस्क । बसंत पंचमी सिखाती है की पुराने के अंत के साथ नए का जन्म होता है अर्थात श्रृजन होता है, जैसे शरीर मरता है तो आत्मा का नया जन्म होता है, असल में देखा जाये तो अंत और शुरुआत एक ही सिक्के के दो पहलु होते है ।
बसंत ऋतु आने के पहले पतझड़ का उदास मौसम होता है, लेकिन बसंत पंचमी के साथ ही बसंत ऋतु भी आने लग जाती है । बसन्त ऋतु में पतझड़ से ख़ाली हुए पेड़, फिर से लहलाह उठते है और उनमे एक चमक उतार आती है । इसी तरह हमारे जीवन में भी यदि किसी प्रकार की उदासी आती है तो हमको उसके प्रति उदासी नहीं होना चाहिए, सोचना चाहिए की जरुर अच्छे दिन भी आयेंगे ।
प्रकृति के श्रृजन का चक्र जो है वो बसंत पंचमी से शुरू होता है, यह हमारी चेतना को खोलता है, पकाता है, रंग भरता है, जैसे हम टेसू के फुल तोड़ते है पकाते है रंग भरते है वैसे ही । भगवत गीता के 10वें अध्याय में 35वें श्लोक में भगवान ने कहा – “बसतं ऋतु मैं स्वयं हूँ (ऋतूनाम गोसुमाकहरा) !”
बसंत ऋतु का आगमन बसंत पंचमी के रूप में होता है, बसंत उत्सव आनंद और चेतना का ऋतु है, इसे ऋतुराज भी कहते है ।यहाँ जीवन की जड़ता का त्याग करके नए कपोल फोड़ने का सन्देश दिया गया है । शिव के मन में काम विकार करने के उद्देश्य से देवता काम को शिव के पास भेजते है वो भी बसंत पंचमी था, लेकिन भगवान ने उसका नाश किया और बाद में उसी काम को पुनर जीवन भी दिया । ऐसे ही हम सबके जीवन में “अयंवस्ता सोमित्रे नन: भ्लिअग्ननित:” किस्किन्दः कांड में वाल्मीकि ने लिखा है । आचार्य हजारी प्रसाद ने भी बसंत आ गया जैसी सुन्दर कविता लिखा है ।